चुनावो में टिकटों की बिक्री नई बात नही हैहाल ही मार्गेट जी ने जो मुंह खोला है, उससे कोई आश्चर्य नही करना चाहिए, क्योंकि कोई भी जब तक मुंह नही खोलता जब तक की उसकी पार्टी में सुनी जाती रहे टिकट बिक्री की बिमारी से हर राजनीतिक पार्टी बीमार है मुलायम सिंह यादव तो पहले ही धनीव्यक्तियों को संसद पहुचाने को
सही बता चुके है वैसे इस मामले बसपा को सबसे आगे मान सकते है खैर बचा कोई नही है, सभी के हाथ कीचड में सने है
टिकट वितरण की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की जरूरत हैक्योंकि फिलहाल की व्यवस्था के अनुशार चुनाव आयोग भी पार्टी की आंतरिक मामले में दखंदाजी नही कर सकता है राजनीत की इस बिमारी को दूर
करने में हमारा चुनाव आयोग अभी विल्कुल असमर्थ दिखाई दे रहा है, इसका एक मुख्य कारण
पार्टियों का सहयोग ना देना है लेकिन अंत में जिम्मेदारी हमारी ही तो है
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